બુધવાર, 3 નવેમ્બર, 2010

सत्य का दर्शन

सत्य की सार्वभौम एवं सर्वव्यापी भावना के प्रत्यक्ष दर्शन वही कर सकता है जो क्षुद्रतम प्राणी से भी उतना ही प्रेम कर सके जितना कि स्वयं को करता है। और जो ऐसा करने का आकांक्षी हो, वह जीवन के किसी क्षेत्र से अपने को असंपृक्त नहीं रख सकता। यही कारण है कि सत्य के प्रति मेरे अनुराग ने मुझे राजनीति के क्षेत्र में ला खड़ा किया है; और मैं बिना किसी हिचक के, किंतु विनम्रतापूर्वक यह नहीं जानते कि धर्म क्या है।

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