બુધવાર, 3 નવેમ્બર, 2010

सर्वोच्च सिद्धांत

मेरे लिए सत्य सर्वोच्च सिद्धांत है, जिसमें अन्य अनेक सिंद्धांत समाविष्ट हैं। यह सत्य केवल वाणी का सत्य नहीं है अपितु विचार का भी है, और हमारी धारणा का सापेक्ष सत्य ही नहीं अपितु निरपेक्ष सत्य, सनातन सिद्धांत, अर्थात ईश्वर है। ईश्वर की असंख्य परिभाषाएं हैं, क्योंकि वह असंख्य रूपों में प्रकट होता है। ये असंख्य रूप देखकर मैं आश्चर्य और भय से अभिभूत हो जाता हूं और एक क्षण के लिए तो स्तंभित रह जाता हूं।
पर मैं ईश्वर को केवल सत्य के रूप में पूजता हूं। मैं अभी उसे प्राप्त नहीं कर सका हूं, पर निरंतर उसकी खोज में हूं। इस खोज में हूं। इस खोज में मैं अपनी सर्वाधिक प्रिय वस्तुओं का त्याग करने के लिए तैयार हूं। यदि मुझे इसके लिए अपने जीवन का भी उत्सर्ग करना पड़े तो मुझे आशा है कि मैं उसके लिए तैयार रहूंगा। लेकिन जब तक मुझे इस निरपेक्ष सत्य की प्राप्ति नहीं होती तब तक मुझे अपनी धारणा के सापेक्ष सत्य पर ही अवलंबित रहना होगा। तब तक यह सापेक्ष सत्य ही मेरा प्रकाशस्तंभ, मेरी ढाल और मेरी फरी है। यद्यपि सत्य की खोज का मार्ग कठिन और संकरा तथा तलवार की धार की तरह तेज है, पर मेरे लिए यह द्रqततम और सरलतम है। इस मार्ग पर दृढतापूर्वक चलते जाने के कारण, अपनी भयंकर भूलें भी मुझे नगण्य प्रतीत हुई है। इस मार्ग ने मुझे संताप से बचाया है और मैं अपनी प्रकाश-किरण का अनुगमन करते हुए आगे बढ़त गया हूं। मार्ग में चलते-चलते मुझे प्रायः निरपेक्ष सत्य-ईश्वर-की हल्की-सी झलक दिखाई दी है, और मेरा यह विश्वास दिनोंदिन दृढ़तर होता जाता है कि केवल ईश्वर ही वास्तविक है और शेष सब अवास्तविक।

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