બુધવાર, 3 નવેમ્બર, 2010

मेरा विश्वास है

मेरा विश्वास है कि हम सभी ईश्वर के संदेशवाहक बन सकते हैं, यदि हम मनुष्य से डरना छोड़ दें और केवल ईश्वर के सत्य की शोध करें। मेरा पक्का विश्वास है कि मैं केवल ईश्वर के सत्य की शोध कर रहा हूं और मनुष्य के भय से सर्वथा मुक्त हो गया हूं।
......मुझे ईश्वरीय इच्छा का कोई प्रकाट्य नहीं हुआ है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के सामने नित्य अपना प्रकटन करता है, लेकिन हम अपनी 'अंतर्वाणी' के लिए कान बंद कर लेते हैं। हम अपने सम्मुख दैदीप्यमान अग्निस्तंभ से आंख मींच लेते हैं। मैं उसे सर्वव्यापी पाता हूं।

ईश्वर सर्वसमर्थ है

मैं जानता हूं कि मैं कुछ भी करने में समर्थ नहीं हूं। ईश्वर सर्वसमर्थ है। हे प्रभो, मुझे अपना समर्थ साधन बनाएं और जैसे चाहें, मेरा उपयोग करें।

अंततः सत्य की ही विजय होगी

सच पूछा जाए तो, एक व्यक्ति को जो बात स्पष्टतया गलत लगती है, वह दूसरे को एकदम बुद्धिमत्तापूर्ण लग सकती है। वह विभ्रम में हो तब भी अपने को उसे करने से रोक नहीं सकता। तुलसीदास ने सच ही कहा है-
रजत सीप महुं भास जिमि जथा भानु कर बारि।
जदपि मृषा तिहुं काल सोइ भ्रम न सकइ काउ टारि।।
मेरे जैसे आदमियों के साथ, जो संभवतः महान विभ्रम से ग्रस्त हैं, यही होता रहेगा। ईश्वर निश्चित रूप से उन्हें क्षमा कर देग, पर दुनिया को ऐसे लागों को बरदाश्त करना चाहिए। अंततः सत्य की ही विजय होगी।

सतत अनुभव ने मेरा

सतत अनुभव ने मेरा यह विश्वास दृढ़ कर दिया है कि ईश्वर सत्य के अलावा और कुछ नहीं हैं.... सत्य की जो क्षणिक झलकियां..... मैं पा सका हूं, उनसे सत्य के अवर्णनीय तेज का वर्णन करना संभव नहीं है, सत्य का तेज नित्य दिखाई देने वाले सूर्य के प्रकाश से लाखों गुना प्रखर है।

सत्य का दर्शन

सत्य की सार्वभौम एवं सर्वव्यापी भावना के प्रत्यक्ष दर्शन वही कर सकता है जो क्षुद्रतम प्राणी से भी उतना ही प्रेम कर सके जितना कि स्वयं को करता है। और जो ऐसा करने का आकांक्षी हो, वह जीवन के किसी क्षेत्र से अपने को असंपृक्त नहीं रख सकता। यही कारण है कि सत्य के प्रति मेरे अनुराग ने मुझे राजनीति के क्षेत्र में ला खड़ा किया है; और मैं बिना किसी हिचक के, किंतु विनम्रतापूर्वक यह नहीं जानते कि धर्म क्या है।

मेरे विचार में

मेरे विचार में, इस संसार में निश्चिंतताओं की आशा करना गलत है-यहां ईश्वर अर्थात सत्य के अलावा और सब कुछ अनिश्चित है। जो कुछ हमारे चारों ओर दिखाई देता है अथवा घटित हो रहा है, सब अनिश्चित है, अनित्य है। बस, एक ही सर्वोच्च सत्ता यहां है जो गोपन है किंतु निश्चित है, और वह व्यक्ति भाग्यशाली है जो इस निश्चित तत्व की एक झलक पाकर उसके साथ अपनी जीवन नैया को बांध देता है। इस सत्य की खोज ही जीवन का परमार्थ है।

सर्वोच्च सिद्धांत

मेरे लिए सत्य सर्वोच्च सिद्धांत है, जिसमें अन्य अनेक सिंद्धांत समाविष्ट हैं। यह सत्य केवल वाणी का सत्य नहीं है अपितु विचार का भी है, और हमारी धारणा का सापेक्ष सत्य ही नहीं अपितु निरपेक्ष सत्य, सनातन सिद्धांत, अर्थात ईश्वर है। ईश्वर की असंख्य परिभाषाएं हैं, क्योंकि वह असंख्य रूपों में प्रकट होता है। ये असंख्य रूप देखकर मैं आश्चर्य और भय से अभिभूत हो जाता हूं और एक क्षण के लिए तो स्तंभित रह जाता हूं।
पर मैं ईश्वर को केवल सत्य के रूप में पूजता हूं। मैं अभी उसे प्राप्त नहीं कर सका हूं, पर निरंतर उसकी खोज में हूं। इस खोज में हूं। इस खोज में मैं अपनी सर्वाधिक प्रिय वस्तुओं का त्याग करने के लिए तैयार हूं। यदि मुझे इसके लिए अपने जीवन का भी उत्सर्ग करना पड़े तो मुझे आशा है कि मैं उसके लिए तैयार रहूंगा। लेकिन जब तक मुझे इस निरपेक्ष सत्य की प्राप्ति नहीं होती तब तक मुझे अपनी धारणा के सापेक्ष सत्य पर ही अवलंबित रहना होगा। तब तक यह सापेक्ष सत्य ही मेरा प्रकाशस्तंभ, मेरी ढाल और मेरी फरी है। यद्यपि सत्य की खोज का मार्ग कठिन और संकरा तथा तलवार की धार की तरह तेज है, पर मेरे लिए यह द्रqततम और सरलतम है। इस मार्ग पर दृढतापूर्वक चलते जाने के कारण, अपनी भयंकर भूलें भी मुझे नगण्य प्रतीत हुई है। इस मार्ग ने मुझे संताप से बचाया है और मैं अपनी प्रकाश-किरण का अनुगमन करते हुए आगे बढ़त गया हूं। मार्ग में चलते-चलते मुझे प्रायः निरपेक्ष सत्य-ईश्वर-की हल्की-सी झलक दिखाई दी है, और मेरा यह विश्वास दिनोंदिन दृढ़तर होता जाता है कि केवल ईश्वर ही वास्तविक है और शेष सब अवास्तविक।

सत्य का दिव्य संदेश

सत्य.... क्या है? यह एक कठिन प्रश्न है, लेकिन अपने लिए मैंने इसे यह कहकर सुलझा लिया है कि जो तुम्हारे अंतःकरण की आवाज कहे, वह सत्य है। आप पूछते हैं कि यदि ऐसा है तो भिन्न-भिन्न लोगों के सत्य परस्पर भिन्न और विरोधी क्यों होते हैं? चूंकि मानव मन असंख्य माध्यमों के जरिए काम करता है और सभी लोगों के मन का विकास एक-सा नहीं होता इसलिए जो एक व्यक्ति के लिए सत्य होगा, वह दूसरे के लिए असत्य हो सकता है। अतः जिन्होंने ये प्रयोग किए हैं, वे इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि इन प्रयोगों को करते समय कुछ शर्तों का पालन करना जरूरी है।
ऐसा इसलिए है कि आजकल हर आदमी किसी तरह की कोई साधना किए बगैर अंतःकरण के अधिकार का दावा कर रहा है, और हैरान दुनिया को जाने कितना असत्य थमाया जा रहा है। मैं सच्ची विनम्रता के साथ तुमसे कहना चाहता हूं कि जिस व्यक्ति में विनम्रता कूट-कूट न भरी हो, उसे सत्य नहीं मिल सकता। यदि तुम्हें सत्य के सागर में तैरना है, तो तुम्हें अपनी हस्ती को पूरी तरह मिटा देना होगा ।